मरीजों के बीच भरोसा कायम करते डॉक्टर रेणुका डामोर
कोरोना वायरस महामारी के बीच डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ बिना थके मरीजों की सेवा में लगे हुए हैं । घर पर उनका भी परिवार चिंतित रहता है लेकिन उनका कहना है कि वे भी सैनिक की तरह देश की सेवा में लगे हुए हैं।
भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत तो पहले से ही अच्छी नहीं थी, लेकिन कोरोना वायरस ने इस व्यवस्था को और हिलाकर रख दिया है. भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी मरीजों को कोरोना से बचाने के लिए ढाल बने हुए हैं. वे 12-12 घंटे काम करते हैं, परिवार से दूर रहते हैं और फिर क्वारंटीन में चले जाते हैं। उनकी जगह कोई और डॉक्टर ले लेता है। यह सिलसिला बिना रुके पिछले 18 महीने से ऐसे ही चल रहा है। डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ के सामने केवल यही चुनौतियां ही नहीं है. पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट पहनना और उसे उतारना भी किसी चुनौती से कम नहीं है। पीपीई किट पहनने के दौरान ना तो डॉक्टर और ना ही स्वास्थ्यकर्मी टॉयलेट जा सकते हैं और ना ही पानी पी सकते हैं।
उदयपुर जिले के गुलाब सिंह शक्तावत सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भींडर में दिसबंर 2020 से कोरोना वार्ड में मरीजो की देख रेख कर रही डॉक्टर रेणुका डामोर ने बताया, "कोविड-19 ना केवल मरीजों के लिए बल्कि डॉक्टरों के लिए भी एक नई बीमारी है. जब मेरी कोविड-19 के लिए ड्यूटी लगी तो उस वक्त इस अस्पताल में बहुत सारे कोरोना के मरीज थे।
डॉ. रेणुका डामोर
डॉ. डामोर बताते हैं, "सामान्य ड्यूटी की तुलना में कोविड-19 की ड्यूटी बेहद अलग है। क्योंकि आपको इसमें पीपीई किट पहनना पड़ता है ।आम तौर पर मरीज के साथ कोई ना कोई तीमारदार होता है लेकिन कोविड-19 के केस में कोई नहीं होता है। मरीज भी आपसे ही अपनी इच्छा जाहिर करते हैं। लेकिन दवा के अलावा हमें मरीजों की इच्छाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है। जैसे कि किसी ने बिस्कुट खाने की मांग कर दी या फिर सेब।" वे बताते हैं कि मरीजों की इच्छा को पूरा करने के लिए कई बार निजी तौर पर भी काम करना पड़ा।
थकावट और तनाव भरा काम
कोविड-19 के फैलने के साथ ही समाज में एक भय का माहौल है। लोगों के दिमाग में इस महामारी को लेकर पहले से ही कई चीजें चल रही हैं. ज्यादातर नकारात्मक ही हैं। डॉक्टर या स्वास्थ्यकर्मी ड्यूटी पर जाते हैं तो परिवार और शुभचिंतकों को कई तरह की चिंता होने लगती है। कोविड-19 की ड्यूटी के दौरान डॉक्टरों को विशेष सुरक्षा कवच के साथ साथ अपने सहयोगी, परिवार और शुभचिंतकों के बारे में भी सोचना पड़ता है. उन्हें यह सोचना पड़ता है कि कहीं उनकी एक गलती से संक्रमण ना फैल जाए। उन्हें ड्यूटी के दौरान चौकस रहते हुए और पीपीई किट पहने हुए मरीजों की जांच करनी पड़ती है। दिमाग के किसी कोने में परिवार और बच्चों के बारे में भी कुछ ना कुछ चलता रहता है।
डॉ. रेणुका डामोर कहती हैं कि इन सब चुनौतियों के बावजूद आपको अपने सहयोगियों और मरीजों से जो सहयोग मिलता है वह काफी शक्ति देता है. उनके मुताबिक, "मरीज जब आपके प्रति आभार व्यक्त करते हैं तो नई ऊर्जा मिलती है." डॉ. डामोर कहती हैं कि कोविड-19 के कार्य में अत्यधिक एहतियात बरतना पड़ता है. उनके मुताबिक एक भी गलत कदम दूसरों के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है. वहीं डॉ. सुरेश डामोर कहते हैं कि जूनियर डॉक्टर भी कोरोना के खिलाफ लड़ाई में बहुत ही ज्यादा बढ़ चढ़कर काम कर रहे हैं। वे कहते हैं, "जूनियर डॉक्टरों को जब हमने काम करते देखा तो वे हमारे लिए प्रेरणा स्त्रोत बने. मुझे लगा कि जब वे इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते।"
डॉक्टर और नर्स ही नहीं बल्कि डिसइंफेक्शन के काम से जुड़े लोग भी लगातार जोखिम के साथ सैनेटाइजेशन का काम करते हैं. कंधे पर स्प्रेयर लटकाकर उन्हें भीषण गर्मी में कई घंटे तक काम करना पड़ता है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे शहरों में घनी बस्तियों में सैनेटाइजेशन का काम भी अपने आप में बड़ी चुनौती है. वहां सामाजिक दूरी तो संभव ही नहीं है ऐसे में सफाई कर्मचारी मास्क और दस्ताने के सहारे ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने का काम कर रहे हैं.