भगवान गणेश जी से भावसार समाज का बड़ा ही सम्बन्ध व महत्व है। भाऊ साहेब ने फिर से जीवंत किया जो आज तक है। पूरे देश मे मनाया जाता है। लेखक चंद्र प्रकाश भावसार regards bhawsar today news paper

भगवान गणेश जी से भावसार समाज का बड़ा ही सम्बन्ध व महत्व है। भाऊ साहेब ने फिर से जीवंत किया जो आज तक है। पूरे देश मे मनाया जाता है। सभी को गणेश महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं श्रीमान लक्ष्मण जवले भावसार (भाऊसाहेब रंगारी) द्वारा 1892 जब देश अंग्रेजों की दास्तान से गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था उस समय अंग्रेजी एक दूसरे से किसी को मिलने नहीं देते थे। देशवासी बहुत ही परेशान थे। उस परेशानी से छुटकारा पाने के लिए और आजादी दिलाने के लिए भाऊ साहेब ने एक उपाय सोचा और 1892 भाद्रपद चौथ (चतुर्थी) को गणपति जी की स्थापना कर एक कार्यक्रम का आयोजन महाराष्ट्र के पुणे में प्रथम बार किया। इस कार्यक्रम के तहत उन्होंने सोचा कि 10 दिन का कार्यक्रम रहेगा। हम सभी क्रांतिकारी एक दूसरे से गणेश भगवान के दर्शन के माध्यम से मिलते रहेंगे। गणेश भगवान भावसारो के भाई हैं मां हिंगलाज के पुत्र हैं। मां हिंगलाज शक्ति स्वरूपा महादेव जी की पत्नी "सती" के 51 शक्तिपीठों में से प्रथम शक्तिपीठ मां "हिंगलाज" का है मां हिंगलाज आदिशक्ति ने पुनर्जन्म मां पार्वती के रूप में लिया था। मां गौरी /पार्वती के पुत्र गणेश जी। मां हिंगलाज कुलदेवी सम्पूर्ण क्षत्रिय समाज जो अलग रूपो में मां को मानता है। माँ शक्ति स्वरूपा के अनेक नाम है। वाकल देवी मां, बायन मां, तनोट देवी माँ, कालिका मां, लालबाई-फूलबाई, नागणेशी मां व अन्य बहुत नाम से मां विख्यात है। भगवान राम जी के जन्म से लगभग दो वर्ष पूर्व मां हिंगलाज ने क्षत्रिय कुल की रक्षा के लिए साक्षत प्रकट हो कर भगवान परशुराम जी को रोका कहा ये मेरे अनन्य भक्त है। ये अहिंसा के मार्ग पर चल कर कार्य कर रहे है। मां हिंगलाज ने परशुराम जी को 22 वी बार क्षत्रिय संहार से रोक दिया मां का आशीर्वाद पा कर परशुराम जी महेन्द्र पर्वत पर चले गए और गौर तपस्या करने लगे। माता की इस उदारता से भावसिंह जी सारसिंह ने माँ के समक्ष मां की सुंदरी की लाज रखने के लिए प्रण लिया। आज के बाद हम कभी भी हमारे नाम के साथ "सिंह" नही लगाएंगे। आपकी सुंदरी की लाज रखने के लिए हम कपड़े से सम्बंधित व्यपार करेंगे। सहस्त्रबाहु ने कामधेनु गाय के लिए जगदग्नि ऋषि को मार दिया। तब यह सब देखकर परशुराम जी को क्रोध आया और उन्होंने प्रण लिया कि धरती से क्षत्रियों को समूल नष्ट कर दूंगा। इसी वजह से उन्होंने 21 बार क्षत्रियों को धरती से समूल नष्ट करने के लिए फरसा उठाया ओर संहार भी किया था। उसी संदर्भ में मां हिंगलाज के परम भक्त भावसिंह जी सारसिंह जी की भक्ति से प्रसन्न होकर परशुराम जी को साक्षात प्रकट होकर रोक कर मां हिंगलाज ने सम्पूर्ण क्षत्रियों की रक्षा की। मां ने परशुराम जी से कहा ये मेरे अनन्य भक्त हैं। ये कभी भी जीवन में अहिंसा के मार्ग पर नहीं चले। बाद में आज से 2 हजार वर्ष पूर्व से ही भावसार कपड़ो की रंगाई करने लगे तो रंगारी कहलाए। आज भी राजस्थान के उदयपुर जिले के कैलाशपुरी में चैत्र कृष्ण चतुर्दशी को भगवान एकलिंगनाथजी को ध्वजा अर्पित की जाती है। आज गणेशजी जी का जन्मोत्सव है। ये माँ गौरी/हिंगलाज के पुत्र है। भावसिंह जी सारसिंह जी भी माँ हिंगलाज के पुत्र है। इसलिए भावसारो के भाई कहलाए। भावसिंह जी सारसिंह जी ने मां के समक्ष प्रण लिया हमारे नाम के आगे "सिंह" नही लगाएंगे। सिंह नहीं लगाने से "भावसार" कहलाए। क्षत्रिय का मतलब शत्रुओं से रक्षा करना। और राजपूत का मतलब राजा का पुत्र। सम्पूर्ण भारतवर्ष में सभी भावसारो को जो पौराणिक इतिहास जानता है वो भावसार को क्षत्रिय राजपूत ही मानते/जानते ओर ये भी जानते है ये हमारे सगे भाई के समान है। चन्द्रप्रकाश भावसार AIBKM राजस्थान सेक्रेटरी


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