समाज सेवा सर्वोपरि लेखक राजेश पारिख भावसार regards bhawsar today news paper

*समाज सेवा का सर्वोत्तम स्वरूप*
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समाज सेवा का सबसे पहला कार्य जनमानस मे विवेक शीलता जगाना है, जिससे लोग अपनी अवांछनीय रूढियों को छोड़कर औचित्य अपनाने और सतमार्ग पर चलने के लिये तत्पर हो सके, यह  कार्य जिन प्रयत्नों से होता है । उन्हें सर्वोत्तम समाज सेवा माना जायेगा ।
इससे समाज का ही हित होगा।
समाज सेवा की डगर पर चलकर साधन तो नहीं मिलते पर साधना जरूर प्रखर होती है ।
समाज सेवा मे हम जितना प्यार, सेवा, औरो को देते है, उससे कहीं ज्यादा गुना हजारों  गुना प्यार हमे उनसे मिलता है, जितना अपनत्व हम बाँटते है, उससे कहीं गुना बढ़-चढ़कर अपनापन हमें अपने आप ही बिना माँगे मिल जाता है ।
इस सेवा भाव मे जो स्वयं की भावशुद्वि होती है, उसके अंतर्मन मे गहरी आध्यात्मिक शक्ति बिना किसी प्रयास से पनप जाती है,
यह समाज सेवा से मिलने वाला ऐसा अनमोल उपहार है, जो बिना मोल मिल जाता है 
और सबसे बढ़कर स्वयं मे इंसान होने की अनुभूति होती है ।
ऐसा इंसान जो सिर्फ अपनी शक्ल सूरत के साथ अपनी इंसानियत सेवा-भाव के कारण भी
समाज समपिर्त इंसान है ।
अपने गुण-कर्म, स्वभाव
से अपने चरित्र चिंतन व्यवहार से इंसान है ।
समाज सेवा की भावना तो सभी के दिलो मे होती होगी । लेकिन समाज की उन्नति एवं विकास के लिए हममें से हर एक व्यक्ति को 
अपनी योग्यता, क्षमता
एवं परिस्थिति के अनुसार कुछ न कुछ प्रयत्न अवश्य करना चाहिए ।
गलती करने के बाद हमने कभी किसी को गले लगाना नही सीखा गलती करने वाले को आत्मीयता अपनापन देना नहीं जाना, गलतियों को हमने माफ  नहीं किया और इसी का परिणाम है की आज समाज मे बिखराव, एकजुटता की कमी आ गई है ।
प्रत्येक व्यक्ति के पास ईश्वर ने दो बहुमूल्य एवं खूबसूरत उपहार दिए है, बुद्धि एवं भावना,
हमारे जीवन मे हर पल उपयोग होता है,
जहाँ बुद्वि का प्रयोग होना है, वहां भावना का प्रयोग नहीं होना चाहिए, और जहां भावना का प्रयोग होना है, वहां बुद्वि का प्रयोग नहीं होना चाहिए ।
पर जहां दोनों की आवश्यकता है, वहाँ पर बुद्वि के अनुसार भावना का सही उपयोग होना चाहिए । 


समाज एक सम्पूर्ण शरीर की भांति है, जिस तरह से शरीर के सारे अंगों द्वारा शरीर की गतिविधि चलती है ।
ठीक उसी तरह सभी के सहयोग से समाज की गतिविधियां चलती है
व्यक्ति का समाज के प्रति वहीं दायित्व है जो अंगों का सम्पूर्ण शरीर के प्रति दायित्व है ।  
समाज मे कोई सफलता व्यक्ति विशेष की नहीं होती है । संगठित सदस्यों की एकता और मेहनत के द्वारा प्राप्त होती है ।
समाज मे कभी भी (मैं)
का राग नही अपनाना चाहिए (हम) का पाठ होना चाहिए, ऐसी सकारात्मक सोच ही समाज और सभी कार्यक्रताओं को जोडें रखती है ।
समाज मे ग्रुप बाजी कतई नहीं होनी चाहिए,
यह समाज को तोड़ने का काम करती है,
इससे समाज का कभी भी उद्वार नहीं हुआ ।


लेख़क 


राजेश पारिख भावसार


Regards


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